गौतम बुद्ध की जीवनी | The Life Journey of Gautama Buddha in Hindi
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व लुंबिनी (जो आज नेपाल में स्थित है) में हुआ था। उनका असली नाम सिद्धार्थ था, और वे राजा शुद्धोधन और रानी माया के पुत्र थे। उनके जन्म से पहले, रानी माया ने एक सफेद हाथी का सपना देखा था, जिसे अत्यंत शुभ संकेत माना गया। इस घटना ने भविष्यवाणी की ओर इशारा किया कि सिद्धार्थ या तो एक महान सम्राट बनेंगे या संन्यासी बनकर सत्य का मार्ग दिखाएंगे।
राजकुमार सिद्धार्थ का पालन-पोषण
सिद्धार्थ का पालन-पोषण एक राजकुमार के रूप में विलासिता और समृद्धि में हुआ। राजा शुद्धोधन ने उन्हें हर प्रकार के दुःख और कष्ट से दूर रखने का पूरा प्रयास किया। जब सिद्धार्थ युवा हुए, उनका विवाह यशोधरा से हुआ और उनके एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम राहुल रखा गया।
चार कष्ट और संसार का त्याग
एक दिन नगर भ्रमण के दौरान सिद्धार्थ ने जीवन के चार मुख्य कष्ट देखे – वृद्धावस्था, बीमारी, मृत्यु और एक संन्यासी। इन दृश्यों ने उन्हें गहरे प्रश्नों में डाल दिया और उन्हें जीवन की असली पीड़ा का कारण जानने की तीव्र इच्छा हुई। इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए उन्होंने राजमहल, संपत्ति, परिवार और समस्त ऐश्वर्य का त्याग कर संन्यास ले लिया।
गौतम बुद्ध के बोध प्राप्ति का मार्ग
29 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ ने सत्य की खोज के लिए कठोर साधनाएँ कीं, लेकिन कठोर तप से भी उन्हें आत्मज्ञान नहीं प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने ‘मध्यम मार्ग’ अपनाया, जो न तो विलासिता की ओर था और न ही कठोरता की ओर।
बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए उन्हें अंततः आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई। इस बोधि के क्षण में उन्होंने समझा कि इच्छाएँ और मोह ही दुःख का कारण हैं। उन्हें यह भी ज्ञात हुआ कि इच्छाओं का अंत करके ही संसार के दुःख का अंत किया जा सकता है। इस बोधि प्राप्ति के बाद वे बुद्ध, अर्थात “जाग्रत” कहलाए।
गौतम बुद्ध के चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग
ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया, जिसे “धर्मचक्र प्रवर्तन” कहा जाता है। उन्होंने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग की शिक्षा दी:
गौतम बुद्ध ने कहा दुःख का सत्य
जीवन में दुःख का होना।
दुःख का कारण
इच्छाएँ और मोह दुःख का कारण हैं।
दुःख का अंत
इच्छाओं का अंत करके दुःख समाप्त किया जा सकता है।
गौतम बुद्ध ने कहा दुःख समाप्ति का मार्ग
अष्टांगिक मार्ग का पालन करके मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
बुद्ध की शिक्षाएँ और भिक्षु संघ
बुद्ध ने अपने अनुयायियों के लिए भिक्षु संघ की स्थापना की, जिससे उनके विचार और उपदेश लोगों तक पहुँच सके। उन्होंने जीवन में करुणा और अहिंसा का महत्व बताया और कहा कि सभी जीवों के प्रति प्रेमपूर्ण दृष्टि रखनी चाहिए तथा द्वेष और हिंसा से दूर रहना चाहिए।
महापरिनिर्वाण और उनकी शिक्षाओं का प्रभाव
अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भी बुद्ध ने अपने उपदेशों का प्रसार जारी रखा। 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर में उन्होंने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया और अपनी सांसारिक यात्रा समाप्त की। उनके महापरिनिर्वाण के साथ ही उनके उपदेश संपूर्ण विश्व में शांति, करुणा और संतुलित जीवन का संदेश फैलाते रहे।
गौतम बुद्ध का जीवन और उनके उपदेश आज भी एक अमूल्य धरोहर के रूप में जीवित हैं। उनके जीवन से यह सिखने को मिलता है कि सच्चे सुख और शांति का मार्ग मोह और इच्छाओं का त्याग करके, मध्यम मार्ग का अनुसरण करना है। बुद्ध का जीवन एक अद्वितीय यात्रा थी, जो शांति, करुणा और आत्मज्ञान का स्रोत है, और यही संदेश आज भी संपूर्ण मानवता को प्रेरित करता है।